प्रिय प्रधानमंत्री जी, सप्रेम प्रणाम !
मैं इक ग्र्रास्रूट्स लेवल का
इनोवेटर हूँ ! इसे में मजाक में घासफूस के लेवल वाला आविष्कारक भी कहता हूँ !
9th
क्लास ड्रॉप आउट हूँ
, इसी एजूकेशन सिस्टम का जरा कम अनपढ़ हूँ मैं , पिछले दस साल से बेरोजगार , सिर्फ
आविष्कार –
आविष्कार और खुराफाती विचार , इस से पहले और भी बहुत कूच करवाया है जिंदगी ने वो
फिर कभी विस्तार से , मेरे पास आविष्कार
तो बहुत हैं पर सिर्फ अपने ४ आविष्कारों पर पटेंट ले पाया हूँ अब तक , ज्यादा
पटेंट लेने मैं ज्यादा पैसे लगते हैं और फिर रिनेवल फी भी तो भरनी पड़ती है !
उदाहरण के तोर पे इक आविष्कार का जिक्र करना चाहूँगा – जिसका की अभी तक मेने पेटेंट फ़ाइल ही नहीं किया “अडवांस रेलवे बैरियर” – पता
नहीं कितने लोग हैं जो शायद लाखों जो जल्दी मैं ये फाटक पार करने में कट मर जाते
हैं ? अब मेरे जैसे इन्नोवेटर को यह ध्यान रखना पड़ता है की रेलवे अपने बैरिअर पर
ज्यादा पैसे नहीं खर्च कर सकती – तो कम
कीमत में 2 या 3 रूपये
में या शायद इस से भी कम , मेरे पास आविष्कार है , लोग बंद रेलवे फाटक के
निचे से निकालना तो दूर उसे छूएंगे भी नहीं , पास नहीं खड़े होंगे उसके और रेलवे
उसे कई और भी जगह इस्तेमाल कर सकती है— कई जगह
.... और ये सिर्फ मुझे मालूम है की कहाँ ? भीड़ भाद में प्लेटफार्मों पर step stairs जेसी
इनोवेसन और बहोत कुछ ! और इंडियन रल्वे
मेरी उस इन्नोवेसन से कमाई जो करगी वो अलग ! और इंडियन रल्वे जितने पैसे ये
विज्ञापन देने में खर्च करता है .. करोडो .. की बंद फाटक पार करना खतरनाक है और
फलां फलां ....वो ही मुझे अगर अस् ए रायल्टी मिल जाये तो मेरा भी भला ! एसे बहुत से आविष्कार और आइडिया हैं जो की आम
लोगों का भारत का ग्लोब का इस पूरे अस्त्तित्व का भला कर सकते हैं , जेसे की स्टोव
के लिए सेफ्टी वाल्व – जो की गरीब लोगो को
जलने मरने से बचायेगा- बने मुद्दत हो गई पर लागू आज तक नहीं हूया, स्टोव आज भी फट
रहे हैं लोग मर रहे हैं घायल हो रहे हैं ,और यही नहीं की सिर्फ भारत में – कई देशो में जो भी गरीब मूलक हैं , इन पर लोग रिसर्च करते है , परसेंटेज निकालते है ,फिर मीटिंग्स होती
है , डिस्कसन होता है , और इस सब कसरत में करोडो खर्च भी होते है , पर
समाधान मोजूद है – लागू
नहीं हो पाते ! एसी कई इन्नोवेसन हैं मेरे पास, सरकारी डिपार्टमेंट द्वारा
एक्सेप्टेड --- पर आविष्कारक को और उस के परिवार को आज भी भूखे पेट सोना पड़े तो
क्या ये दुर्भाग्य नहीं है ?
और ऐसा नहीं है की
मैं उन लोगों से कोन्टक्ट करने की कोशिश नहीं कर रहा जो की वास्तव में इन सब बातों
के लिए ज़िम्मेदार हैं – जेसे की सेम पित्रोदा [ National Knowledge Commission
] या प्रोफ़ेसर अनिल गुप्ता [ www.nifindia.org ] , पर क्या है ना की ये सब भी आम जनता से उतने ही
दूर हैं जितना की आपका पि एम् ओ ! और ये लोग अगर किसी की बात को सुनना भी चाहते
हैं तो अपनी ही टर्म्स और कंडीशन पर – जो की आविष्कारकों के साथ संभव नहीं है, सिर्फ
भारत में ही नहीं – इस पूरे ग्लोब पर कहीं भी यह संभव नहीं है की कोई इन्नोवेटर
किसी दुसरे के हिसाब से सोचे और इन्वेंट करे ! और ये सब मुझे अपने मुंह से नहीं
बोलना चाहिए क्यूकी हिंद्दी में इक कहावत है की अपने मुंह मियाँ मीठू , पर अगर मैं नहीं बताऊंगा तो कोन बताएगा ? मेरी
कोई PR एजेंसी तो है नहीं ! खालिस इनोवेटर होने के साथ ही मैं इक इनोवेटिव
थिन्कर , फिलासफर , राइटर और फेस रीडर और इक ऐसा बन्दा भी हूँ जिसकी की कभी --- कभी 6th सेन्स भी जाग जाती है – और जिसने की मुंशी प्रेमचंद जी से लेकर फ्रायड – फेद्द्रिक नीत्शे – कामू – चेखव – मिर्ज़ा ग़ालिब और खुशवंत सिंह से ब्लादिमीर
नोबोकोव और कबीर दास जी से लेकर ओशो रजनीश जी तक को पढ़ा है और ---- और समझा भी है,
खाली पढ़ लेने से कुछ नहीं होता , समझा भी है ! अंग्रेज जब भारत आये तो कहीं न कहीं इस देश में तरक्की
की सूरूआत भी हूई – रेले – टेलीफोन
-- टेलीग्राम वगेरह – और जब वो विदा हो गए सन 1947 में तो हम फिर वहीँ
रुक गए – क्या ये आजादी हमने अपने इसी नाकारेपन को जिंदा रखने के लिय ली है ?
और आप देखिये की हमारी नोकर्साही में ब्यूरोक्रेसी में ये नाकारापन कितनी ढीठता के
साथ मोजूद है – आपके IAS - PCS क्या कर रहे हैं , इसकी कुछ
मिसालें हैं मेरे पास --- “ जेविअर पास्कुआल
साल्सेदो साहब का कहना है की नोकरशाही हर
संभव काम को अस्मंभव बना देने की कला है “ “ नोकरशाही हर अछे
काम की मौत है ऐसा अल्बे़त आइन्स्टाइन साहब कह गए हैं “ हर क्रान्ति इक दिन
भाप बन कर उद जाती है और अपने पीछे नोकरशाही का कीचड़ छोड जाती है – फ्रांज़ काफ्का साहिब
– और ये सब कुछ वैसे
का वेसा ही है --- एसी बहुत सी बातें हैं और हम सब जानते हैं ------ और जान कर
अनजान बने रहते हैं ! और अभी कुछ दिन पहले ही इन्फोसिस के संस्थ्पक नारायण मूर्ती
जी के विचार देखें आप ब्यूरोक्रेसी के बारे में , वो तो कहते हैं की IAS व्यवस्था को समाप्त
ही कर देना चाहिए !
अब जेसे की अन्ना
हजारे साहेब हैं मात्र छठी पास – और
सरकार को झुकना पड़ा उनके सामने – तो में
तो दो क्लास ज्यादा पढ़ा हूँ उनसे – बस इक
छोटा सा फर्क है ओंमे और मुझमे – वो
फेमस हैं मैं नहीं – और होना भी नहीं
चाहता !
बहुत ही खराब हालात हैं फिलहाल इस देश मैं
innovators
के लिए , ये एअसा ही है की
जेसे आप आम या बरगद या नीम के पेद्द को इक गमले में बोयें ---- अब गमला चाहे आप
कितना ही बड़ा क्यूँ ना करते जाएँ ? बहुत सारे लोग हैं – काम के लोग – जो इस देश का भाग्य
बदलने की छमता रखते हैं और जिन्हें की
बोंजाई बना कर रखा गया है , उन्हें वास्तविक जमीन की ज़रूरत है ! हमारे देश में
लाखों स्टीव जोब्स और बिल गेट्स की छमता रखने वाले दाल रोटी को परेशान हैं ----
सिर्फ इसलिए क्युऊकी आप आम जनता से पूरी तरह कटे हूए हैं , वरना ऐसे दस बीस लोग तो
मैं ही दे सकता हूँ आपको जो की Government of India का भाग्य मात्र छह
महीने में बदल दंगे , खोखली बात नहीं करेंगे – बस उनका कहना मानना पड़ेगा आपको, और उन सब
की क्वालटी आपके पि चिदम्बरम साहेब या स्वर्गीय माधवराव सिंधिया जी से कम नहीं
होगी !
और कब तक हम अपने
बच्चों को थोमस अल्वा एडीसन और जेम्सवाट ही पढ़ाते रहेंगे क्यूँ हमारे जेसे लोग
शिछा मंत्रालय को दिखाई नहीं देते ? मेरे जेसे लोगों की एंट्री कब होगी किताबों
में – मरणोपरांत ?
कई और भी लफड़े हैं शिछा मंत्रालय में --- बहुत गडबडझाला है ---अब मुझे
बचपने में इक कविता पढ़ाई गई – कविता का नाम था फूल
की अभिलाषा ---- मुझे तोड़ लेना ए बन माली उस पथ पर देना तुम फेंक , मात्र भूमि पर
शीश चढाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक --- बहुत ही कम उम्र में पढ़ी थी ये लाइने --- क्या
कर रहे हैं हम ? केसा ब्रेन डेवलप कर रहे हैं हम बच्चों का ? अभी कुछ दिन पहले मेरा 3 साल का लड़का नर्सरी में अपनी पहली कविता
सीख कर आया की --- मर जायेंगे मिट जायेंगे सिने पे गोली खायेंगे पर देश का नाम
बच्चायेंगे ---- मेने अपना सर पिट लिया --- व्हाट द हेल वि आर डूइंग ? आर वि अल
कायदा --- ? क्या जिहादी तेयार कर रहे
हैं हम ? मर जायेंगे मिट जायेंगे सिने पे
गोली खायेंगे – इक तीन साल का बच्चा ? हमारा शीछा मंत्रालय क्या मनोविज्ञान से पूरी
तरह अनजान है क्या ?
मैं आपको इस देश के
इक बहुत ही कड़वे सत्य से अवगत कराता हूँ की महात्मा गांधी जी ने इस देश के लिए जो
भी सेवक तेयार किये थे वो सब किसी न किसी प्रकार से आजादी मिलते ही शाशक बन गए – राजा बन गए , सत्ता के शीर्ष पर जा कर बैठ गए ,
और भले ही उनमे प्रतिभा है या नहीं वो आज भी ऊपर ही बेठे हैं – उनके नाती पोते तक --- राजनीति की अलावा भी , चाहे
वो किसी कोल्ड ड्रिंक कम्पनी का पद हो या सेल फोन बेचने वाली कंपनी का
और ये ब्यूरोक्रेसी
को लेकर आइन्स्टीन साहेब से लेकर नारायण मूर्ती जी का जो भी कहना है – आखिर एसी कौन सी वजह है की हम अब तक बदलाव नहीं
कर पाए ?
असल में हम देखें तो दोष हमारी नीतियों में है ,
कुछ नीतियों को बदलने से ब्योरोक्रेट्स को लगता है की उनके हाथ कमज़ोर हो जायेंगे
और कुछ नीतियों को बदलने पर politicians
को लगता
है की उनके हाथ कमज़ोर हो जायेंगे --- और आम पब्लिक या देश के लिय कोई अपनी पावर
क्यूँ खोना चाहेगा ? और इक और अजीब बात देखिये की ये बात आपसे कह कौन रहा है -----
इक 9th क्लास
ड्रॉप आउट !
अलबर्ट आइन्स्टाइन
साहेब की इक और लाइन है मेरे पास -----The
Problems That Exist in The World Today Can Not Be Solved By The
Level of Thinking That
Created Them !
आपका घासफूस के लेवल वाला आविष्कारक
अगस्त्य नारायण शुक्ल
New Delhi, 110026
India.
Mo: +91-9868477936
CC. to : Planning
Commission of India.
National Innovation Foundation
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