Wednesday, March 25, 2015

Potato farmers V/S. Kriket !

क्या व्यथा है की आलू किसान आत्महत्या कर रहे और भारत क्रिकेट का खेल देखने में व्यस्त !

https://plus.google.com/+AgastyaNarainShukla/posts/GgudecdYm71

Tuesday, March 24, 2015

How stupid Media making stupid

ये कुछ मीडीया हाऊस ...टाइम्स ग्रुप जेसे ऐसे विज्ञापन छापते है जो की सरासर धोखा और धांधली के होते हैं ! इनके लिए क्यूँ न कोई ऐसी गाइड लाइन जारी की जाये जो की छपने या अन्य माध्यम से देखने के लिए इक निश्चित दूरी से इक निश्चित फॉन्ट का साइज़ ज़रूरी हो !
चेहरा पहचानिये ?

Sunday, March 22, 2015

मोदी जी मन की बात करेगें वो भी रेडियो टी वी पर कमाल है ना !

मन ! इसका मतलब तो जानते हैं न आप ?
सुनता आया हूँ की बड़े बड़े ऋषी मुनि परमं तपस्वी भी अपने मन की नहीं बोल पाये , जो भी कहा जाता है बुध्ही - मस्तिष्क के आगे नहीं , बुद्ध को जब आत्मसाछात्कार हूआ तो कथा कहती है की वो कई दिन मौन रहे क़ि इसे शब्दों - भाषा में बांधें कैसे ? अब भूमि के इस भाग भारत में जेसे क़ि चमत्कार होने को है की नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी भारत के प्रधानमन्त्री मन की ... अपने ह्रदय की तो लोग अनसुनी कर देते ... उससे भी गहन मन की ... वो शब्दों में बाँध कर भाषा के द्वारा दूसरों से सम्बोधित होंगे !

ओशो ने कहा ...
मन की दो अवस्थाएं है, एक दौड़ता हुआ मन, एक ठहरा हुआ मन। दौड़ता हुआ मन, निरंतर ही जहां होता है, वहां नहीं होता। ऐसा समझें कि दौड़ता हुआ मन कहीं भी नहीं होता। दौड़ता हुआ मन सदा ही भविष्य में होता है। आज में नहीं होता, अभी नहीं होता, यहां नहीं होता।

कल, आगे कहीं और, कल्पना में, सपने में, कहीं दूर भविष्य में होता है। और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। अस्तित्व है वर्तमान का, अभी का, इसी क्षण का। जब मैं कहता हूं इसी क्षण का, इतना कहने में भी वह क्षण वर्तमान का जा चुका। इतनी भी देर हुई, तो हम वर्तमान के क्षण को चूक जाते हैं।

जानने में जितना समय लगता है, उतने में भी वर्तमान जा चुका होता है। एक क्षण हमारे हाथ में है अस्तित्व का, लेकिन मन सदा वासना में, भविष्य में होता है। भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं। इसलिए दौड़ता हुआ मन कहीं होता नहीं होता। जहां हो सकता है, वहां होता नहीं; और जहां हो ही नहीं सकता, वहां होता है।

वर्तमान में हो सकता था, लेकिन वर्तमान में दौड़ता हुआ मन नहीं होता। आप वर्तमान में दौड़ नहीं सकते; जगह नहीं है, स्पेस नहीं है। दौड़ने के लिए भविष्य का विस्तार चाहिए। वासना के लिए अनंत विस्तार चाहिए। वर्तमान का क्षण बहुत छोटा है। उस छोटे-से क्षण में आपकी वासना न समा सकेगी। यह जो दौड़ता हुआ मन है, यह दौड़ता ही रहता है। कहीं भी ठहरने का इसे उपाय नहीं है।

जहां ठहर सकता है, वर्तमान में, वहां ठहरता नहीं। और भविष्य तो है नहीं। वहां सिर्फ दौड़ सकता है। ठहरने की वहां कोई सुविधा नहीं है। यह दौड़ता हुआ मन ही हमारी बीमारी है, रोग है। अगर अधार्मिक आदमी की हम कोई परिभाषा करना चाहें, तो वह परिभाषा ऐसी नहीं हो सकती है कि वह आदमी, जो ईश्वर को न मानता हो। क्योंकि ऐसे बहुत- से व्यक्ति हुए हैं, जो ईश्वर को नहीं मानते और धार्मिक हैं।

महावीर हैं, बुद्ध हैं, वे ईश्वर को नहीं मानते हैं, पर परम धार्मिक हैं। उनकी आस्तिकता में रत्तीभर भी संदेह नहीं। और अगर बुद्ध और महावीर की धार्मिकता में संदेह होगा, तो इस पृथ्वी पर फिर कोई भी आदमी धार्मिक नहीं हो सकता। अधार्मिक आदमी उसे नहीं कह सकते हैं, जो ईश्वर को न मानता हो। अधार्मिक आदमी उसे भी नहीं कह सकते, जो वेद को न मानता हो, बाइबिल को न मानता हो, कुरान को न मानता हो।

अधार्मिक आदमी केवल उसे कह सकते हैं कि जिसके पास केवल दौड़ता हुआ मन है, ठहरे हुए मन का जिसे कोई अनुभव नहीं। फिर वह कुछ भी मानता हो- ईश्वर को मानता हो, आत्मा को मानता हो; वेद को, कुरान को, बाइबिल को मानता हो-अगर दौड़ता हुआ मन है, तो वह आदमी धार्मिक नहीं है।

और फिर चाहे वह कुछ भी न मानता हो, लेकिन अगर ठहरा हुआ मन है, तो वह आदमी धार्मिक है। क्योंकि मन जहां ठहरता है, वहीं तत्क्षण उस परम सत्ता से संबंध जुड़ जाता है। हम उसे क्या नाम देते हैं, यह गौण बात है। कोई उसे ईश्वर कहे, यह उसकी मर्जी। और कोई उसे आत्मा कहे, यह भी उसकी मर्जी।

और कोई भी नाम न देना चाहे, यह भी उसकी मर्जी। और कोई उसके संबंध में चुप रह जाए, यह भी उसकी मर्जी। कोई उसे शून्य कहे, कोई उसे मिट जाना कहे, कोई उसे पूरा हो जाना कहे, यह उसकी मर्जी की बात है। लेकिन जहां मन ठहरा, वहीं आदमी धार्मिक हो जाता है।
अब वो प्रधानमन्त्री हैं ऊ चाहें तौ नीरा गूड़ाए गूड खांए !

दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है !
कमाल है ना साहेब ?