Saturday, January 18, 2014

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जब तक हरा भरा हूँ उसी रोज़ तक हैं बस,
सारे दुआ सलाम ये मालूम है मुझे !

हमें पसन्द नहीं ज़ंग में भी मक्कारी,
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैँ !

एक सूरज बहुत ज़रूरी है,
चाँद तारे सहर नहीं करते !

ज़नाब हस्तीमल !



बुलंदी देर तक किस सक्श के हिस्से में रहती है,

बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है,

बहुत जी चाहता है कैदे जाँ से हम निकल जाएँ,

तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है,

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मै अदा कर ही नहीं सकता,

मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है !

 

 

 

 
                                                                                                                   
 

हमारी दोस्ती से दूश्मंनी शरमाई रहती है,

हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है,

गिले शिकवे ज़रूरी हैं अगर सच्ची मोह्बत हो,

जंहा पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है,

मेरी सोहबत में भेजो ताकि इसका डर निकल जाए,

बहुत सहमी हूई दरबार में सच्चाई रहती है !

शराफत ढूडने आये हो इस एवाने सियासत में,

ये चकला है यहाँ इज़त्त नहीं रुसवाई रहती है,

खुदा महफूज़ रक्हे मूल्क को गन्दी सियासत से,

शराबी देवरों के बीच में भोजाई रहती है !

 
मुनव्वर राना
 
 
 

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